त्रिरत्न का संस्कृत में अर्थ तीन शरीर अथवा तीन व्यक्तियों का समूह है। त्रिरत्न, बौद्ध धर्म के तीन रत्नों को दर्शाता है। ये स्वंय बौद्ध धर्म (उनकी शिक्षा) व संघ (भिक्षु संघ) हैं। संघ का शाब्दिक अर्थ भली-भांति जुड़ने से है। यह संस्कृत मूल के हन् तथा उपसर्ग सम् से बना है, जिसका अर्थ एकजुटता एवं पूर्णता से है। बौद्ध समुदाय एक साथ जुड़ा हुआ, विभेदन के प्रति अभेद्य, व सद्भाव में विश्वास रखने वाला है। प्रारम्भ से ही बौद्ध उपासना का एकमात्र लक्ष्य संघ ही रहा है। बौद्ध का प्रसिद्ध सस्वर पाठ- बुद्धम् शरणम् गच्छामि, धर्मम् शरणम् गच्छामि, संघम शरणम् गच्छामि रहा है। जिसका अर्थ है- मैं बुद्ध की शरण में जाता हूँ, मैं धर्म की शरण में जाता हूँ, मैं संघ की शरण मैं जाता हूँ। स्रोत- टाटजाना एवं मीराबाई बलाऊ। बुद्धिस्त सिम्बल्स। इन्साइक्लोपीडिया ऑफ बुद्धिज्म। चित्र- तिब्बती त्रिरत्न
त्रिरत्न का संस्कृत में अर्थ तीन शरीर अथवा तीन व्यक्तियों का समूह है। त्रिरत्न, बौद्ध धर्म के तीन रत्नों को दर्शाता है। ये स्वंय बौद्ध धर्म (उनकी शिक्षा) व संघ (भिक्षु संघ) हैं। संघ का शाब्दिक अर्थ भली-भांति जुड़ने से है। यह संस्कृत मूल के हन् तथा उपसर्ग सम् से बना है, जिसका अर्थ एकजुटता एवं पूर्णता से है। बौद्ध समुदाय एक साथ जुड़ा हुआ, विभेदन के प्रति अभेद्य, व सद्भाव में विश्वास रखने वाला है। प्रारम्भ से ही बौद्ध उपासना का एकमात्र लक्ष्य संघ ही रहा है। बौद्ध का प्रसिद्ध सस्वर पाठ- बुद्धम् शरणम् गच्छामि, धर्मम् शरणम् गच्छामि, संघम शरणम् गच्छामि रहा है। जिसका अर्थ है- मैं बुद्ध की शरण में जाता हूँ, मैं धर्म की शरण में जाता हूँ, मैं संघ की शरण मैं जाता हूँ। स्रोत- टाटजाना एवं मीराबाई बलाऊ। बुद्धिस्त सिम्बल्स। इन्साइक्लोपीडिया ऑफ बुद्धिज्म। चित्र- तिब्बती त्रिरत्न