रहस्यमय व्यक्तित्व वाले हसरत मोहानी अपनी कई उपलब्धियों के बावजूद प्रायः गुमनाम ही रहे। वे एक राष्ट्रवादी नेता थे, और कई लोगों के अनुसार ‘इंक़लाब ज़िंदाबाद’ का नारा उनकी ही देन है। वे भारत में कम्युनिस्ट पार्टी के संस्थापक भी हैं। हसरत साहब सूफी मुसलमान विद्वान थे और उनको मौलाना का ख़िताब मिला हुआ था। वे संविधान सभा में मुस्लिम लीग के सदस्य भी थे। इन्होनें देश के विभाजन का विरोध करते हुए संविधान सभा का जिन्ना द्वारा प्रस्तावित बहिष्कार में हिस्सा नहीं लिया था।
इन्होंने श्रीकृष्ण के प्रेम में मिश्रित उर्दू-अवधी में भक्तिपूर्ण कविताओं की रचना की। उर्दू- अवधी भाषाओं के इस मिश्रण को ‘भाषा’ कहा जाता है और इसकी शुरुआत गंगा-जमुना क्षेत्र के रहीम जैसे मुस्लिम भक्ति-कवियों द्वारा की गयी थी।
हसरत साहब लिखते हैं,
“कुछ हम को भी अता हो कि ऐ हज़रत-ए-क्रिशिन, इक़लीम-ए-इश्क़ आप के ज़ेर-ए-कदम है ख़ास,
‘हसरत’ की भी क़ुबूल हो मथुरा में हाज़िरी, सुनते हैं आशिक़ों पे तुम्हारा करम है आज”
अर्थात – “हे कृष्ण, मुझ पर भी कुछ कृपा करो, सुना है आपके कदमों में तो प्रेम का जहाँ बसा है
मथुरा में आप हसरत की भी हाजिरी स्वीकार करें, मैंने सुना है कि आप प्रेमियों के प्रति विशेष दयालु हैं।“
रहस्यमय व्यक्तित्व वाले हसरत मोहानी अपनी कई उपलब्धियों के बावजूद प्रायः गुमनाम ही रहे। वे एक राष्ट्रवादी नेता थे, और कई लोगों के अनुसार ‘इंक़लाब ज़िंदाबाद’ का नारा उनकी ही देन है। वे भारत में कम्युनिस्ट पार्टी के संस्थापक भी हैं। हसरत साहब सूफी मुसलमान विद्वान थे और उनको मौलाना का ख़िताब मिला हुआ था। वे संविधान सभा में मुस्लिम लीग के सदस्य भी थे। इन्होनें देश के विभाजन का विरोध करते हुए संविधान सभा का जिन्ना द्वारा प्रस्तावित बहिष्कार में हिस्सा नहीं लिया था।
इन्होंने श्रीकृष्ण के प्रेम में मिश्रित उर्दू-अवधी में भक्तिपूर्ण कविताओं की रचना की। उर्दू- अवधी भाषाओं के इस मिश्रण को ‘भाषा’ कहा जाता है और इसकी शुरुआत गंगा-जमुना क्षेत्र के रहीम जैसे मुस्लिम भक्ति-कवियों द्वारा की गयी थी।
हसरत साहब लिखते हैं,
“कुछ हम को भी अता हो कि ऐ हज़रत-ए-क्रिशिन, इक़लीम-ए-इश्क़ आप के ज़ेर-ए-कदम है ख़ास,
‘हसरत’ की भी क़ुबूल हो मथुरा में हाज़िरी, सुनते हैं आशिक़ों पे तुम्हारा करम है आज”
अर्थात – “हे कृष्ण, मुझ पर भी कुछ कृपा करो, सुना है आपके कदमों में तो प्रेम का जहाँ बसा है
मथुरा में आप हसरत की भी हाजिरी स्वीकार करें, मैंने सुना है कि आप प्रेमियों के प्रति विशेष दयालु हैं।“