पुरातत्वविदों ने तमिलनाडु में छह स्थलों पर लोहे की वस्तुएँ खोजी हैं। आस-पास के चारकोल, धान और चीनी मिट्टी के अवशेष 1,145-3,345 ईसा पूर्व, यानी 3,200 से 5,400 वर्ष पुराने पाए गए हैं। इससे पता चलता है कि औज़ार, हथियार और अन्य वस्तुएँ बनाने के लिए लोहे को निकालने, गलाने, गढ़ने और आकार देने की प्रक्रिया भारतीय उपमहाद्वीप में स्वतंत्र रूप से विकसित हुई होगी। इससे पहले, हैदराबाद के गाचीबोवली में लगभग 2000 ईसा पूर्व का लोहा मिला था। सबसे पहला संगठित लोहा और इस्पात निर्माण तुर्की में लगभग 1300 ईसा पूर्व शुरू हुआ था।
तमिलनाडु और दक्षिण भारत लौह एवं इस्पात के एक महान केंद्र के रूप में विकसित हुए। पहली शताब्दी ईसा पूर्व से, उन्होंने प्रसिद्ध ‘वूट्ज़’ इस्पात का विकास किया, जो पतले ब्लेड बनाने की अपनी क्षमता के लिए प्रसिद्ध था। यह विश्व प्रसिद्ध ‘दमिश्क’ तलवारों के निर्माण का कच्चा माल था। कहा जाता है कि वूट्ज़ तमिल शब्द ‘उरुक्कु’ (मिश्र धातु) या ‘उक्कु’ (पिघला हुआ) का गलत अनुवाद है। उत्तर भारत ने अपनी लौह तकनीकें विकसित कीं, जिनका प्रमाण गुप्त काल के जंग-मुक्त लौह स्तंभ में मिलता है, जो अब दिल्ली में कुतुब मीनार के पास स्थित है। चित्र में तमिलनाडु में उत्खनन से प्राप्त लौह वस्तुओं को दिखाया गया है।
स्त्रोत : https://www.bbc.com/news/articles/c62e36jm4jro
पुरातत्वविदों ने तमिलनाडु में छह स्थलों पर लोहे की वस्तुएँ खोजी हैं। आस-पास के चारकोल, धान और चीनी मिट्टी के अवशेष 1,145-3,345 ईसा पूर्व, यानी 3,200 से 5,400 वर्ष पुराने पाए गए हैं। इससे पता चलता है कि औज़ार, हथियार और अन्य वस्तुएँ बनाने के लिए लोहे को निकालने, गलाने, गढ़ने और आकार देने की प्रक्रिया भारतीय उपमहाद्वीप में स्वतंत्र रूप से विकसित हुई होगी। इससे पहले, हैदराबाद के गाचीबोवली में लगभग 2000 ईसा पूर्व का लोहा मिला था। सबसे पहला संगठित लोहा और इस्पात निर्माण तुर्की में लगभग 1300 ईसा पूर्व शुरू हुआ था।
तमिलनाडु और दक्षिण भारत लौह एवं इस्पात के एक महान केंद्र के रूप में विकसित हुए। पहली शताब्दी ईसा पूर्व से, उन्होंने प्रसिद्ध ‘वूट्ज़’ इस्पात का विकास किया, जो पतले ब्लेड बनाने की अपनी क्षमता के लिए प्रसिद्ध था। यह विश्व प्रसिद्ध ‘दमिश्क’ तलवारों के निर्माण का कच्चा माल था। कहा जाता है कि वूट्ज़ तमिल शब्द ‘उरुक्कु’ (मिश्र धातु) या ‘उक्कु’ (पिघला हुआ) का गलत अनुवाद है। उत्तर भारत ने अपनी लौह तकनीकें विकसित कीं, जिनका प्रमाण गुप्त काल के जंग-मुक्त लौह स्तंभ में मिलता है, जो अब दिल्ली में कुतुब मीनार के पास स्थित है। चित्र में तमिलनाडु में उत्खनन से प्राप्त लौह वस्तुओं को दिखाया गया है।
स्त्रोत : https://www.bbc.com/news/articles/c62e36jm4jro