विष्णु सहस्रनाम महाभारत के अनुशासन पर्व में है। बाणों की शय्या पर लेटे भीष्म पितामह युधिष्ठिर को उपदेश दे रहे हैं। जब उनसे पूछा गया कि सबसे अच्छा स्तोत्र कौन सा है तो उन्होंने विष्णु के एक सहस्र रूपों का वर्णन किया। श्लोक के प्रारंभ का पहला पद इस प्रकार है:
शुक्लाम्बरधरं विष्णुं शशिवर्णं चतुर्भुजम् ।
प्रसन्नवदनं ध्यायेत् सर्वविघ्नोपशान्तये ॥
अर्थात् : जो श्वेत वस्त्र पहने हुए हैं, सर्वव्यापी हैं, जिनका रंग चन्द्रमा जैसा है, और जिनकी चार भुजाएँ हैं, ऐसे प्रसन्न मुख वाले भगवान [गणेश या विष्णु] का हम सभी विघ्नों को दूर करने के लिए ध्यान करते हैं।
प्रारंभ में ही विघ्न-बाधाओं के निवारण के संदर्भ के कारण कई लोग इसे गणेश का आह्वान ही मानते हैं। हालांकि, इतिहासकारों के अनुसार गणेश पूजा का वर्तमान रूप, संभवतः महाभारत की रचना के बाद, गुप्त काल में शुरू हुआ था ।
विष्णुसहस्रनाम के कुछ दूसरे संस्करणों में एक अन्य श्लोक जुड़ गया है, जो स्पष्टतः गणेश आह्वान ही है।
‘शुक्लाम्बरधरं’ सम्बोधन कालांतर में रचे गए अन्य स्तोत्रों में भी मिलता है जैसे कि, देवी ललिता सहस्रनाम ।
स्रोत : https://hindupedia.com/en/Vishnu_Sahasranamam
विष्णु सहस्रनाम महाभारत के अनुशासन पर्व में है। बाणों की शय्या पर लेटे भीष्म पितामह युधिष्ठिर को उपदेश दे रहे हैं। जब उनसे पूछा गया कि सबसे अच्छा स्तोत्र कौन सा है तो उन्होंने विष्णु के एक सहस्र रूपों का वर्णन किया। श्लोक के प्रारंभ का पहला पद इस प्रकार है:
शुक्लाम्बरधरं विष्णुं शशिवर्णं चतुर्भुजम् ।
प्रसन्नवदनं ध्यायेत् सर्वविघ्नोपशान्तये ॥
अर्थात् : जो श्वेत वस्त्र पहने हुए हैं, सर्वव्यापी हैं, जिनका रंग चन्द्रमा जैसा है, और जिनकी चार भुजाएँ हैं, ऐसे प्रसन्न मुख वाले भगवान [गणेश या विष्णु] का हम सभी विघ्नों को दूर करने के लिए ध्यान करते हैं।
प्रारंभ में ही विघ्न-बाधाओं के निवारण के संदर्भ के कारण कई लोग इसे गणेश का आह्वान ही मानते हैं। हालांकि, इतिहासकारों के अनुसार गणेश पूजा का वर्तमान रूप, संभवतः महाभारत की रचना के बाद, गुप्त काल में शुरू हुआ था ।
विष्णुसहस्रनाम के कुछ दूसरे संस्करणों में एक अन्य श्लोक जुड़ गया है, जो स्पष्टतः गणेश आह्वान ही है।
‘शुक्लाम्बरधरं’ सम्बोधन कालांतर में रचे गए अन्य स्तोत्रों में भी मिलता है जैसे कि, देवी ललिता सहस्रनाम ।
स्रोत : https://hindupedia.com/en/Vishnu_Sahasranamam