माण्डूक्य उपनिषद सबसे छोटा उपनिषद है, जिसमें केवल 12 मंत्र हैं। यह सिखाता है कि ‘ॐ’ शब्द सम्पूर्ण ब्रह्मांड का प्रतिनिधित्व करता है। सब कुछ ब्रह्म है, और आत्मा भी — यही महावाक्य “अयम् आत्मा ब्रह्म” है।
आत्मा को चार अवस्थाओं के माध्यम से दर्शाया गया है, जो ‘ॐ’ के चार अक्षरों से संबंधित हैं — ‘अ’, ‘उ’, ‘म’ और एक चौथी ध्वनिहीन अवस्था।
· जागृत अवस्था वैश्वानर है, जो ‘अ’ से जुड़ी है।
· स्वप्न अवस्था तैजस है, जो ‘उ’ से जुड़ी है।
· सुषुप्त अवस्था प्राज्ञ है, जो ‘म’ से जुड़ी है।
· और एक चौथी अवस्था चतुर्थ (जिसे गौड़पाद ने बाद में तुरीय कहा) है, जो वर्णनातीत है।
श्लोक 7 में तुरीय अवस्था का वर्णन इस प्रकार है:
“यह चतुर्थ अवस्था कही जाती है: न तो अंतर्मुखी चेतना, न ही बहिर्मुखी चेतना, न ही दोनों का संयोग; न कोई अखंड चेतना, न ही ज्ञानी या अज्ञानी; अदृश्य, अवर्णनीय, अछूता, निराकार, अव्याख्येय, जिसकी आत्मस्वरूप में ही चेतना हो; सम्पूर्ण भौतिक सत्ता की निवृत्ति; परम शांत, सुखद और अद्वितीय — यही आत्मा है, जिसे जानना चाहिए।”
स्रोत: स्वामी कृष्णानंद की अनुवादित व्याख्या
माण्डूक्य उपनिषद सबसे छोटा उपनिषद है, जिसमें केवल 12 मंत्र हैं। यह सिखाता है कि ‘ॐ’ शब्द सम्पूर्ण ब्रह्मांड का प्रतिनिधित्व करता है। सब कुछ ब्रह्म है, और आत्मा भी — यही महावाक्य “अयम् आत्मा ब्रह्म” है।
आत्मा को चार अवस्थाओं के माध्यम से दर्शाया गया है, जो ‘ॐ’ के चार अक्षरों से संबंधित हैं — ‘अ’, ‘उ’, ‘म’ और एक चौथी ध्वनिहीन अवस्था।
· जागृत अवस्था वैश्वानर है, जो ‘अ’ से जुड़ी है।
· स्वप्न अवस्था तैजस है, जो ‘उ’ से जुड़ी है।
· सुषुप्त अवस्था प्राज्ञ है, जो ‘म’ से जुड़ी है।
· और एक चौथी अवस्था चतुर्थ (जिसे गौड़पाद ने बाद में तुरीय कहा) है, जो वर्णनातीत है।
श्लोक 7 में तुरीय अवस्था का वर्णन इस प्रकार है:
“यह चतुर्थ अवस्था कही जाती है: न तो अंतर्मुखी चेतना, न ही बहिर्मुखी चेतना, न ही दोनों का संयोग; न कोई अखंड चेतना, न ही ज्ञानी या अज्ञानी; अदृश्य, अवर्णनीय, अछूता, निराकार, अव्याख्येय, जिसकी आत्मस्वरूप में ही चेतना हो; सम्पूर्ण भौतिक सत्ता की निवृत्ति; परम शांत, सुखद और अद्वितीय — यही आत्मा है, जिसे जानना चाहिए।”
स्रोत: स्वामी कृष्णानंद की अनुवादित व्याख्या