गुरु तेग बहादुर को 1675 ईस्वी में औरंगज़ेब के आदेश पर मृत्युदंड दिया गया। उन्होंने उन कश्मीरी पंडितों की उपासना करने की स्वतंत्रता के लिए आवाज़ उठाई थी, जिन पर सम्राट ने अत्याचार किया था। दिल्ली के चाँदनी चौक में उन्हें जहाँ शहीद किया गया, वह स्थल आज गुरुद्वारा सीसगंज साहिब द्वारा चिह्नित है (‘सीस’ अर्थात ‘शीश’/सिर)। उनके अनुयायी उनके कटे हुए सिर को जोखिमपूर्वक उठाकर आनंदपुर साहिब ले गए। उनके धड़ को लक्षी शाह और उनके पुत्र ने अपमान से बचाने के लिए गुप्त रूप से अपने घर ले जाकर घर को जला दिया, ताकि उनका अंतिम संस्कार हो सके। इसी स्थल पर, संसद भवन के निकट, गुरुद्वारा रकाबगंज साहिब (‘रकाब’ अर्थात ‘धड़/शरीर’) स्थित है। 1783 ईस्वी में सिख सेनानायक बघेल सिंह ने दिल्ली पर अधिकार कर लिया और तत्कालीन कमजोर सम्राट शाह आलम से इन दोनों स्थानों पर छोटे-छोटे गुरुद्वारे बनाने की अनुमति ली, जिन्हें बाद में विस्तारित किया गया।
चित्र :- विकिमीडिया, रवि द्विवेदी। स्रोत :- सिखविकी, विकिपीडिया।
गुरु तेग बहादुर को 1675 ईस्वी में औरंगज़ेब के आदेश पर मृत्युदंड दिया गया। उन्होंने उन कश्मीरी पंडितों की उपासना करने की स्वतंत्रता के लिए आवाज़ उठाई थी, जिन पर सम्राट ने अत्याचार किया था। दिल्ली के चाँदनी चौक में उन्हें जहाँ शहीद किया गया, वह स्थल आज गुरुद्वारा सीसगंज साहिब द्वारा चिह्नित है (‘सीस’ अर्थात ‘शीश’/सिर)। उनके अनुयायी उनके कटे हुए सिर को जोखिमपूर्वक उठाकर आनंदपुर साहिब ले गए। उनके धड़ को लक्षी शाह और उनके पुत्र ने अपमान से बचाने के लिए गुप्त रूप से अपने घर ले जाकर घर को जला दिया, ताकि उनका अंतिम संस्कार हो सके। इसी स्थल पर, संसद भवन के निकट, गुरुद्वारा रकाबगंज साहिब (‘रकाब’ अर्थात ‘धड़/शरीर’) स्थित है। 1783 ईस्वी में सिख सेनानायक बघेल सिंह ने दिल्ली पर अधिकार कर लिया और तत्कालीन कमजोर सम्राट शाह आलम से इन दोनों स्थानों पर छोटे-छोटे गुरुद्वारे बनाने की अनुमति ली, जिन्हें बाद में विस्तारित किया गया।
चित्र :- विकिमीडिया, रवि द्विवेदी। स्रोत :- सिखविकी, विकिपीडिया।