उत्तर कांड में तुलसीदास जी राम राज्य की विशेषताओं का बखान करते हुए कहते हैं कि राम-राज्य में रोगों और हिंसा का भय नहीं है, सर्वत्र सद्भाव है, प्रकृति समृद्ध है, सदाचार की जीत होती है और प्राकृतिक संपदा प्रचुर है। लोग अपने मन को ही साधते हैं किसी अन्य वासना को नहीं । गांधी जी की सुशासन की अवधारणा भी रामराज्य पर ही आधारित है। कहा जाता है कि गांधी जी ने अपने पूरे जीवन में मात्र एक फिल्म — विजय भट्ट द्वारा निर्देशित राम राज्य — देखी थी ।
भारतीय परंपराओं में स्वयं पर विजय पाना ही सर्वोच्च उपलब्धि मानी गई है। जैन दर्शन ने अपने सबसे महत्वपूर्ण तीर्थंकर को स्वयं पर विजय पाने का प्रतीक बना कर महावीर की उपाधि से सम्मानित किया है। तुलसी लिखते हैं : दंड जतिन्ह कर भेद जहँ नर्तक नृत्य समाज। जीतहु मनहि सुनिअ अस रामचंद्र कें राज॥ श्री रामचंद्रजी के राज्य में “दण्ड” केवल संन्यासियों के हाथों में है और “भेद” नाचने वालों के समाज में है और ‘जीतो’ शब्द केवल मन के जीतने के लिए ही सुनाई पड़ता है।
राजनीति में शत्रुओं को जीतने तथा चोर-डाकुओं आदि को दमन करने के लिए साम, दाम, दण्ड और भेद – ये चार उपाय किए जाते हैं। रामराज्य में कोई शत्रु है ही नहीं, इसलिए ‘जीतो’ शब्द केवल मन के जीतने के लिए सुनाई पड़ता है। कोई अपराध करता ही नहीं, इसलिए दण्ड किसी को नहीं होता, “दण्ड” शब्द केवल संन्यासियों के हाथ में रहने वाले दण्ड के लिए ही रह गया है। तथा सभी के प्रति समानभाव होने के कारण भेदनीति की आवश्यकता ही नहीं रह गई। “भेद” शब्द केवल सुर-ताल के भेद के लिए ही काम में आता है।
उत्तर कांड में तुलसीदास जी राम राज्य की विशेषताओं का बखान करते हुए कहते हैं कि राम-राज्य में रोगों और हिंसा का भय नहीं है, सर्वत्र सद्भाव है, प्रकृति समृद्ध है, सदाचार की जीत होती है और प्राकृतिक संपदा प्रचुर है। लोग अपने मन को ही साधते हैं किसी अन्य वासना को नहीं । गांधी जी की सुशासन की अवधारणा भी रामराज्य पर ही आधारित है। कहा जाता है कि गांधी जी ने अपने पूरे जीवन में मात्र एक फिल्म — विजय भट्ट द्वारा निर्देशित राम राज्य — देखी थी ।
भारतीय परंपराओं में स्वयं पर विजय पाना ही सर्वोच्च उपलब्धि मानी गई है। जैन दर्शन ने अपने सबसे महत्वपूर्ण तीर्थंकर को स्वयं पर विजय पाने का प्रतीक बना कर महावीर की उपाधि से सम्मानित किया है। तुलसी लिखते हैं : दंड जतिन्ह कर भेद जहँ नर्तक नृत्य समाज। जीतहु मनहि सुनिअ अस रामचंद्र कें राज॥ श्री रामचंद्रजी के राज्य में “दण्ड” केवल संन्यासियों के हाथों में है और “भेद” नाचने वालों के समाज में है और ‘जीतो’ शब्द केवल मन के जीतने के लिए ही सुनाई पड़ता है।
राजनीति में शत्रुओं को जीतने तथा चोर-डाकुओं आदि को दमन करने के लिए साम, दाम, दण्ड और भेद – ये चार उपाय किए जाते हैं। रामराज्य में कोई शत्रु है ही नहीं, इसलिए ‘जीतो’ शब्द केवल मन के जीतने के लिए सुनाई पड़ता है। कोई अपराध करता ही नहीं, इसलिए दण्ड किसी को नहीं होता, “दण्ड” शब्द केवल संन्यासियों के हाथ में रहने वाले दण्ड के लिए ही रह गया है। तथा सभी के प्रति समानभाव होने के कारण भेदनीति की आवश्यकता ही नहीं रह गई। “भेद” शब्द केवल सुर-ताल के भेद के लिए ही काम में आता है।